"mata ka aanchal" kritika Book class 10. summary Ncert and cbse.

 पाठ का सार:- माता का अँचल

माता का अंचल पाठ शिवपूजन सहाय द्वारा लिखित पाठ है इस पाठ के लेखक शिवपूजन सहाय जी हैंइस पाठ में शिवपूजन सहाय ने अपने बचपन के बारे में बताया है यह एक कहानी है लेखक इस कहानी के माध्यम से ग्रामीण जीवन के बारे में बड़ा ही सुंदर वर्णन करते हैं यह कहानी लेखक और उनके माता-पिता के आपसी प्रेम संबंध पर आधारित है इस कहानी का प्रारंभ पिता और पुत्र के आपसी प्रेम संबंध से होता हैऔर विभिन्न तरह की गतिविधियों से होता हुआ माता के प्रेम पर आकर रुक जाता हैइस कहानी में लेखक के पिता उनसे बहुत प्रेम करते हैंऔर लेखक बचपन से ही अपने पिता के साथ रहते हैं,उनके साथ सोते हैं पिताजी  ही नहालाते हैं फिर पूजा के समय अपने पास ही लेखक को बैठा लेते हैंपिताजी लेखक को प्यार से भोलानाथ कह कर पुकारते हैं और साथ में बहुत मस्ती भी करते हैं इस तरह पिता और और पुत्र में बहुत प्रेम है किंतु जब भी लेखक को कोई दुख - दर्द या विपदा या किसी बात का डर  होता है तो वह सिर्फ अपनी माता की गोद में जाकर ही स्वयं को बहुत सुरक्षित महसूस करने का एहसास करते हैं और स्वयं को सुरक्षित मानते हैं इस तरह माता का आंचल लेखक के लिए सबसे सर्वोत्तम सुरक्षित स्थान है









माता का अँचल Summary :-

माता का अंचल पाठ के लेखक शिव पूजन सहाय हैं इसमें  तारकेश्वर कथाकार  हैइस कहानी में पिता अपने साथ अपने पुत्र को सुलाते और सुबह उठा कर नहलाते थे वह पूजा के समय भी उन्हें अपने पास में ही बिठाकर पूजा करते थे और भभूति का तिलक लगाते थे इससे लेखक बहुत खुश होता था तिलक लगाने पर वह भोलेनाथ के जैसा लगने लगते थे पिताजी लेखक को प्यार से भोलानाथ कह कर पुकारते  थे फिर पूजा के बाद पिताजी लेखक को अपने कंधे पर बैठा कर मछलियों को दाना खिलाने के लिए गंगा ले जाते थे  और पूजा के समय लिखी गई राम नाम की पर्चियों पर आटे की गोली लपेट लेते और फिर उनको मछलियों को खिला दिया करते थे फिर गंगा से वापस आते समय वह लेखक को पेड़ों की डालियों पर झूला झूलाते थे लेखक प्यार से अपने पिताजी को बाबूजी कह कर पुकारते थे घर आकर फिर बाबूजी उन्हें अपने साथ चौकी पर बैठा कर अपने हाथों से ही खाना खिलाते थे जब बाबूजी लेखक को छोटे-छोटे खाने  के कोर खिलाते थे तो लेखक की मां लेखक के मना करने पर ही उनकी मां उन्हें बड़े प्यार से अलग-अलग पक्षियों के नाम तोता, मैना, कबूतर आदि. के बनावटी नाम को लेकर छोटे-छोटे कोर बनाकर उन्हें खिलाती थी जब लेखक खाना खा लेते और वह वहां जाने लगते तब उनकी मां उन्हें झपट कर पकड़ लेती और लेखक रोते रहते फिर वह उनके बालों में सरसों का तेल डाल देती और कंगी कर देती और साथ में कुर्ता टोपी पहनाकर बालों की चोटी  गूंथकर टोपी लगा देती थी और लेखक रोते-रोते बाबूजी की गोद में बाहर आ जाते थे और बाहर आते ही वह बालक के झुंड को देखकर गोद से नीचे उतर जाते और झुंड के साथ मौज़-मस्ती करने लगते थे वह कभी चबूतरे पर बैठ कर अलग-अलग नाटक किया करते थे कभी वह मिठाइयों की दुकान लगाते थे तो कभी घरौंदे के खेल में खाने वालों की पंक्ति में जब वह चुपके से आकर बैठ जाते और जब लोगों को खाना नहीं खाने से पहले ही उठा दिया जाता था तो वह सब पूछते की फिर कब भोजन मिलेगा तो कभी वह किसी दूल्हे के आगे चल रही पालकी को देखकर जोर-जोर से चिल्लाने लगते थे


एक बार रास्ते से आते समय कुछ लड़कों की टोली ने मोहन तिवारी को बुढ़वा बेईमान कह कर चिढ़ाने लगे, और फिर मुसन तिवारी ने उन लड़कों का खूब पीछा किया, पर जब वह लड़के भाग गए तो वह मोशन तिवारी पाठशाला में पहुंच गए इस बात से अध्यापक ने लेखक की खूब जोर से पिटाई की यह बात सुनकर लेखक के पिताजी दौड़े-दौड़े पाठशाला आए और अध्यापक से विनती की और पिताजी उन्हें अपने साथ घर ले आए घर आते ही लेखक अपना रोना धोना भूल गए और फिर अपनी मित्र मंडली के साथ हो गए



लेखक अपने मित्रों के साथ मकई के खेत में चिड़ियों  के झंडू को पकड़ने लगे लेकिन चिड़िया हाथ ना आई

जब चिड़ियों के उड़ जाने पर फिर हम एक टीले आगे बढ़कर चूहे के बिल में पानी डालने लगे तो वहां एक सांप निकल आया फिर हम डर के मारे गिरते पड़ते हुए लेखक लहूलुहान हो गए पैरों के तलवों में कांटा चुभ गए

लेखक लहूलुहान घर वापस पहुंचे उस समय पिताजी सामने बैठे हुए थे किंतु पिताजी के साथ अधिक समय बताने के बावजूद भी लेखक पिताजी के पास ना जाकर वह अपनी मां के पास अंदर गए और मां से  लिपट कर स्वयं को अधिक सुरक्षित महसूस करने लगे लेखक को देखते हुए मां ने घबराते हुए लेखक को अपनी आंचल से लेखक की धूल साफ की और लेखक की चोट पर हल्दी लगाई





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